Monday, December 9, 2019

चुनावी दंगल


                          
झारखण्ड की चुनावी दंगल



सुरेन्द्र कुमार बेदिया 

    ख़िरकार झारखंड में चुनाव की डुगडुगी बज गई है। जिसका बेसब्री से इंतजार था। पर, चुनाव आयोग का चरणों में चुनाव कराने का फरमान जारी करना आशंका जाहिर करता है कि कहीं ये सत्ता के दबाव में तो नहीं हैं । ऐसा इसलिए की आजकल स्वायत संवैधानिक निकायों पर प्रश्नचिंह खड़ा हो रहे हैं, क्योंकि महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव एक चरण में संपन्न हो जाती है और वहीं झारखण्ड में पांच चरण में होगी। विपक्ष द्वारा एक चरण की मांग धरी की धरी रह गई। रघुवर सरकार जिस प्रकार सफल मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड में दावा करते रही है कि यहां नक्सलवाद की कोई समस्या नहीं रही। कानून व्यवस्था पूरी तरह ठीक-ठाक है। किसी तरह की अनहोनी की संभावना नजर नहीं आती है और इधर चुनाव आयोग का झारखण्ड में लंबी अवधि तक चुनाव कराना कहीं ना कहीं राज्य सरकार के दावे का पोल भी खोल रही है।

झारखण्ड चुनाव- 2019

           इधर नेता नामक प्राणी चुनाव को लेकर अपने-अपने दडबे से बाहर निकल चुके हैं। बरसाती मेंढ़क  की तरह टर - टर्राने लगें हैं । कुछ तो टिकट पाने की जुगाड़ में उछल-कूद कर अपनी पाला बदल रहे हैं। इनके लिए पार्टी का उसूल, सिद्धांत और विचारधारा कोई मायने नहीं रखती है। ऐसे लोग फूली स्वार्थी किस्म के प्राणी में आते हैं। इनके लिए एक स्थानीय  कहावत सटीक बैठता है- '' जिधर भोज उधर सोझ''। 
          लोकतंत्र का चिथड़े उड़ाने वाले इन नेताओं को आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टियां भी लेने से हिचकती नही है । वहीं पार्टी में माथे का बाल पकने तक अपने कंधों में झंडा ढोने वाले निष्ठावान कार्यकर्ता निरीह प्राणी बन कर रह जाते हैं। वहीं दूसरेे घोंसलों  से आये नेता को दूल्हे राजा की तरह मंच में माला पहनाकर स्वागत की जाती है और उन्हें उपहार स्वरूप पार्टी का टिकट दिया जाता है। सुखदेव भगत, मनोज यादव (कांग्रेस,) जयप्रकाश भाई पटेल, कुणाल षांड़गी (झारखंड मुक्ति मोर्चा), गिरिनाथ सिंह (राजद), भानु प्रताप शाही, (नौजवान संघर्ष मोर्चा) बिटटू सिंह पांकी से अब भगवा रंग में रंग चुके  है, वहीं कांग्रेस के पूर्व झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष डॉ० अजय कुमार भी आप पार्टी  का दामन थाम चुके है। वहीं राधाकृष्ण किशोर इस बार केला(आजसू) खाने को बेताब है। यहां गौर करने वाली बात यह है की भानु प्रताप शाही जो  नौजवान संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष है। उसने मधु कोड़ा की सरकार में मंत्री रहते 130 करोड़ का दवा घोटाला किया और आय से अधिक सम्पति रखने का आरोप है। इसमें केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोपी करार दे रखा है। इनका ट्रायल भी चल रहा है फिर भी बीजेपी ने इसे अपने पार्टी में समाहित कर लिया। कहां गया ''न खाएंगे और न खाने देंगे'' वाली भ्रष्टाचार मुक्त राज्य व भारत का नारा।कायदे से इन नेताओं को चुनाव जीतना ही नहीं चाहिए, लेकिन जनता भी इसे चुन लेती है इसका मायने क्या निकाला जाए ? जिस प्रकार नेता कपड़ों की तरह अपनी पार्टी बदलती है। उसी प्रकार जनता की मानसिकता में भी बदलाव होता है, तभी तो उनके द्वारा दल बदलू नेता को जीत मिल जाती  है। इसका मतलब जनता भी मानने लगी है कि "जब जैसा तब वैसा" वाली मानसिकता अपने जीवन में भी लागू किया जाए। क्योंकि ऊपर से ही इस तरह की प्रदूषित करने वाली स्वार्थी मानसिकता लोगों में भर दी गई है जिससे लोग भी स्वार्थवश अपने विचारों या सिद्धांतों पर अटल नहीं रहते हैं और टॉप टू बॉटम का अनुसरण करते हैं।
         पिछले चुनाव  में बहुतेरे मित्रों का कहना था कि स्थायी सरकार बनेगी तभी झारखण्ड का विकास होगा। यही उम्मीद के साथ बीजेपी को पूर्ण बहुमत 2014 के चुनाव में मिला भी था और रघुवर सरकार पांच साल का कार्यकाल भी पूरी की । लेकिन, क्या सचमुच झारखण्ड विकास के पटरी पर  है ? जवाब मिलेगा नहीं। झारखण्ड के बुनियादी मसले आज भी ज्यों के त्यों मुंह बाये खडी है- झारखण्ड  के बेरोजगारों को अपने राज्य में  रोजगार  उपलब्ध कराना राज्य सरकार का प्राथमिक जिम्मेवारी था,लेकिन झारखंडी नौजवान रोजगार के मामले में छले गये, उन्हें अपने राज्य में ही रोजगार नहीं मिली। राज्य में झारखण्ड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) नामक संस्था जिसका काम रोजगार उपलब्ध कराना है। झारखण्ड बने 19 साल हो गये लेकिन यह संस्था 19 की जगह छठी जेपीएससी की परीक्षा ही ले पायी है। वह भी अधर में लटकी हुई है। झारखण्ड सरकार की उदासीनता और जेपीएससी में घोर अनियमितता और आरक्षण के नियमों का पालन नहीं करने के कारण 6ठी जेपीएससी की मुख्य परीक्षा में छात्रों को सड़कों में उतरने को बाध्य कर दिया।
  
                                                  6ठी जेपीएससी में अनियमितता के विरूद्ध प्रदर्शन

छात्र जेपीएससी कार्यालय के बाहर हफ्ता भर से रातजगा कर परीक्षा के विरोध में महात्मा गाँधी के तसवीर रखकर विरोध प्रदर्शन करते रहे। लेकिन सरकार  के एक भी नुमाइंदे प्रदर्शनकारी छात्रों से मिलने की जरूरत नहीं समझी। छात्रों के प्रति इतनी संवेदनहीनता रघुवर की सरकार में देखने को मिली और मुख्य परीक्षा संगीनों के साये में ले लिया गया। झारखण्ड चुनाव- 2019 तक़रीबन 23 -24 हजार छात्र इसमें शामिल हुए। झारखण्ड की मिडिया में इसे काफी उछाला गया लेकिन सरकार गूंगी -बहरी बनी रही।19 साल से झारखंडी छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता रहा। आज राज्य के लाखों छात्र बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर है, आखिर झारखण्ड किसके लिए अलग हुआ  है ? किसका विकास हो रहा है ? फिर आज चुनाव की घड़ी आयी है तो छात्रों को वो काली रातें याद करना होगा जिसमे उनकी आवाज को हुक्मरानों ने अनसुनी कर दिया था। आज छात्रों को अपना तेवर दृढ़ता के साथ दिखाने का अवसर आ गया है।
          राज्य में पारा टीचरों की संख्या लगभग 74 हजार है। सरकारी टीचरों की बहाली न कर सरकार इनसे काम ले रही है। ये अपने सेवा के स्थायीकरण को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे थे।जिसमे कई  की जाने चली गयी लेकिन सरकार की ओर से सुध तक नहीं ली गयी न उनसे संवाद स्थापित किया गया।  पारा टीचर क्या गलत कर रहे थे ? जबकि इनलोगों से विभिन्न प्रकार के काम करवाये जाते हैं। आंदोलन में पारा टीचरों को प्राण गंवाने पड़ गए। पारा टीचरों ने संघर्ष में प्राण गंवाने वाले साथियों की सौगंध ली है कि एक भी पारा टीचर सत्ता के नशे में चूर रघुवर सरकार को आने वाले चुनाव में वोट नहीं करेंगे और विरोध में प्रचार करेंगे । अगर पारा टीचर इस बार झांसे में नहीं आये तो सरकार के लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी करने की कुब्बत रखते है। क्योंकि इनकी पकड़ जमीनी स्तर तक होती है। उसी प्रकार आंगनबाड़ी में काम करने वाली महिलाओं की दुर्दशा भी देखने को मिली ये महिलाएं राज्य सरकार के प्रमुख योजनाओ को जनता तक पहुंचाती है। अपने मानदेय बढ़ाने के लिए प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर सरकार ने बर्बर तरीके से लाठी चार्ज कर महिलाओं को दौड़ा-दौडा कर पीटा ।

                                                 आंगनबाड़ी  महिलाओं को लाठी  चार्ज  करते  पुलिस 

वह भी पुरुष पुलिस के द्वारा क्या राज्य में महिला पुलिसकर्मी नदारद थे । ये महिलाएं सहायिका और सेविका के लिए 18 हजार और 9  हजार की मांग कर रही थी। विधायक (MLA) की बारी आएगी तो वेतन बढ़ोतरी में देर नहीं लगती लेकिन निरंकुश सरकार ने महिलाओं को लाठी के रूप में सौगात दिया। जबकि सरकार महिला सशक्तिकरण का खूब स्वांग रचती है। पूरे राज्य में लगभग 67 हजार की संख्या में आंगनबाडी महिलाएं हैं। इस बार महिलाओं ने ठानी है की रघुवर सरकार की निरंकुशता का जवाब वोट से देंगे।
        इतना ही नहीं, सरकार के द्वारा यहां के भाषा संस्कृति को बचाने का कोई प्रयास नहीं हुआ। साहित्य संस्कृति कला का संवर्धन कहीं भी नहीं दिखा और न जनजातीय भाषाओं  की पढ़ाई और टीचर की बहाली पर सरकार संजीदा दिखी,जबकि जनजातीय भाषाओं  की पढ़ाई प्राथमिक स्तर से ऊंच शिक्षा तक स्कूलों और कॉलेजों में होनी  है, लेकिन राज्य सरकार उदासीन बनी रही इतना ही नही यहां के लोक कलाकारों को भी उचित सम्मान तक नहीं दिया गया। इन्हे सिर्फ मनोरंजन का साधन समझा जाता रहा है । 
     गौरवतलब है कि जल,जंगल,जमीन,खनिज सम्पदा और पर्यावरण आदिवासियों के प्राण रहे हैं। झारखण्डवासी और उनकी सभ्यता-संस्कृति जमीनों, पहाड़ों और नदियों से जुड़ा हुआ है। लेकिन सरकार झारखण्ड के नदी- नालों, गढ़ा-ढोढ़ा, पोखर- डाडी, तालाब, जंगल- झाड़ और  गैर मजरुआ  जमींनों  को ''भूमि बैंक'' बनाकर उसमें डाल दिया है। ऐसा सरकार निवेश करने वाले आकाओं को जमीन देकर खुश करने, झारखण्ड के हरियाली और खुशहाली को तहस- नहस करने  के लिए तकरीबन 21 लाख एकड़ जमीन लैंड बैंक में जमा कर लिया  है।
         आपको यह भी  मालूम है कि भिन्न भिन्न प्रकार के कौशल विकास केंद्र (Skill Development Center)  सरकार खोल रखी है । यह एक तरह का युवाओं के लिए लॉलीपॉप है। जिसमे दूर -दराज के आदिवासी-मूलवासी युवक -युवतियों को हुनर सिखाने के नाम पर लाया जाता है और उसे प्रशिक्षण देकर अपने राज्य से बाहर दूसरे राज्यों में प्राइवेट जॉब करने के लिए भेज दिया जाता है, जिसमे  मात्र 60007000  रुपया मिलता है। आपको याद होगा राज्य में मोमेंटम झारखण्ड ग्लोबल इन्वेस्टर सम्मिट -2017  का आयोजन  किया गया था। इसमें जनता के गाढ़ी कमाई के 40 करोड़ रूपये देशी विदेशी पूंजी निवेशकों के नाम पर आयोजन में फूँक दिए गये थे। झारखंड में हाथी तक को उड़ाया गया था । कई  कंपनियों के साथ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MOU) हुई थी। इसी कार्यक्रम में रघुवर सरकार एक लाख युवाओं को जॉब ऑफर का लेटर थमाकर रोजगार देने का ढिंढोरा पीटा था। यह मात्र  छः -सात हजार की प्राइवेट नौकरी थी । वह भी अपने राज्य में नहीं, वैसी जगह पर जहां जाने से किराया भी चुकता नही हो पायेगा। सरकार अपने राज्य से आदिवासियों और मूूूूलवासियों को विस्थापन व पलायन करने का अच्छा रास्ता अख्तियार कर लिया है । इस तरह अपने जड़ों से ही आदिवासियों- मूूूूलवासियों को काटने का दुस्साहस करते रही। क्या इनके लिए झारखण्ड में काम ही नहीं है ? क्या सरकार इन बच्चों को अपने ही राज्य में सात -आठ हजार की नौकरी नहीं दिला सकती हैै ? अन्य राज्यों में  मिलने वाली राशि से ये खाएंगे, रहेंगे या फिर अपने  बूढ़े माता -पिता के लिए घर भेजेंगे ? यह भोले- भाले आदिवासी युवकों के साथ क्रुर मजाक है और उनके भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। सरकार इसी को कह रही  है कि हमने लाखों बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराया है। यही है '' न्यू इंडिया, न्यू झारखण्ड''। यह वाकिया किसी भी सभ्य समाज  के लिए बेहद शर्मनाक है।
         इनके कार्यकाल में आपने देखा होगा की राज्य  में भूख से 22-23  लोगों की मौत हो जाती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 की रिपोर्ट कहती है कि झारखण्ड मे सबसे अधिक 48 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। और चार लाख बच्चों की जान को खतरा है। कुपोषण और चिकित्सीय सेवा के अभाव  से रिम्स में 103 और जमशेदपुर में 64 बच्चों की मौत भी हो चुकी है। कई जिलों से भूख से मरने वालों की खबरे भी आती है। यहां तक कि स्वयंसेवी संगठनों  के द्वारा भी पुष्टि की जाती है, लेकिन सरकार भूख से मरने की बात को एक सिरे से नकार देती है। इनके मंत्री सरयू राय इन्हे अफवाह करार देते है, जबकि सिमडेगा की गरीब  मासूम बच्ची 11 वर्षीय संतोषी कुमारी  को राज्य की जनता भूल नहीं सकती है। यह मामला काफी तूल पकड़ा था सरकार की किरकिरी हो गई थी।  जिसको राशन कार्ड रहने के बावजूद उन्हें 35 किलो चावल यह कहकर नहीं दिया गया की राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं है और वह भूख से तड़पकर मर गई। गरीबों के जान से ज्यादा कीमत आधार कार्ड का हो गया है। सवाल है क्या लिंक करवाने का काम सरकार का नहीं था ? डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्मार्ट  सिटी सरीखेे भारी भरकम शब्द गरीबों को लादने से सुदूरवर्ती इलाकों में विकास क्या हो जायेगा ? सवाल यह भी  है क्या भारत यूरोप, आस्ट्रेलिया, जापान और  अमेरिका हो गया है ? उसी प्रकार रामगढ जिला में चिंतामण मल्हार की मौत राशन नहीं मिलने से हो जाता  है और सरकारी महकमा भुख से मौत को ढकने- तोपने पर उतारू हो जाती है। गिरिडीह में आर्थिक तंगी से जूझ रही एक वृद्ध आदिवासी  महिला सावित्री देवी  की भूख से मौत हो गई। इस प्रकार  फेहरिस्त लंबी है। जबकि भूख से मौत समाज के लिए एक कलंक है । सरकार  के लिए तो बेहद शर्मनाक है। भोजन का अधिकार और खाद्य सुरक्षा कानून राज्य में लागू रहने के बावजूद गरीबों की मौत होते रही और सरकार गरीबों के साथ होने की ढोंग कर कान में तेल डाल कर सोते रही है।
      इस बार युवाओं को भली-भांति समझना है कि चुनाव लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है। अतः हम चुनावी लोकतंत्र में वोट अवश्य करें पर बेरोजगारों की फ़ौज खड़ी करने वालों को चोट भी करें। सोंच समझ कर वैसा सरकार व प्रतिनिधि का चुनाव करें जो ईमानदारी पूर्वक बेरोजगारों को स्थायी रोजगार अपने राज्य में देने के लिए कटिबद्ध हो। क्यूंकि हजारों रिक्तियां राज्य में खाली पड़ी है। लोगों की समस्याओं के प्रति उनकी गंभीरता, शैक्षणिक योग्यता, कर्मठता को देखकर ही उनका चयन किया जाय, जो हमारी शिक्षा, स्वास्थ, सिंचाई, पानी, बिजली, रोजगार जैसी मूलभूत समस्याओं को प्राथमिकता देकर समाधान करने की दिशा में हमेशा तत्पर हो। अक्सर युवाओं को चुनाव के समय बहलाया जाता है उसे तरह-तरह के प्रलोभनों  के जरिए जाल में फंसाया जाता है। युवा लालच में पड़ भी जाते हैं जिसका खामियाजा लम्बे समय तक भुगतना पड़ता है।आप इससे सतर्क  रहें और झारखण्ड गढ़ें।  अगर नेता ऐसे हथकंडे अपनाकर चुनाव में जीत दर्ज करते हैं तो यकिन मानिए ये नेता आपके सवालों को लेकर कभी भी मुखर नहीं हो सकते हैं । इसलिए अगर हम नहीं चेतेंगे तो पिछली बार की तरह इस बार भी हमलोग धोखा खाने के लिए अभिशप्त होंगे।
              



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