Tuesday, January 7, 2020

नये वन कानून 2019 और एन आर सी आदिवासी समाज के लिए घातक

नये वन कानून 2019  और एन आर सी  आदिवासी समाज के लिए घातक 

         
सुरेंद्र कुमार बेदिया 

              बेदिया समाज को सरकार के आदिवासी विरोधी कानूनों और नीतियों को शिनाख्त करने, पठन-पाठन कर समझने और जानने की जरूरत है। अपनी चेतना को उन्नत कर व्यापक दृष्टिकोण बनाना है। अक्सर हम पढ़ने में कोताही करते है। सरकार द्वारा समय-समय पर पारित होने वाली कानूनों की तहकीकात नहीं करते, क्योंकि ये कानून हमारे अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर सकते है। कानून की बारीकियों को समझना बेदिया समाज और आदिवासी समुदाय के लिए नितांत आवश्यक है, ताकि मालूम चल सके कि सरकार  हमारी हितैषी बनकर काम कर रही है की नहीं❓अगर हम इसे जानने का जहमत नहीं उठाएंगे तो किसी  भी पार्टी की सरकार को विश्लेषण करने और व्यापक दृश्टिकोण बनाने में सक्षम नहीं हो सकते और सरकारें और पार्टियां आदिवासियों को कठपुतली की तरह नचाते रहेंगी और हमारे ऊपर कानून की कुल्हाड़ी चलेगी और हम सिर्फ मूकदर्शक बने रहेंगे। आज पूरे  देश भर में आदिवासियों को लक्ष्य किया जा रहा है। सदियों से जंगल उनका पुश्तैनी घर रहा है। आज उनके घरौंदों को उजाड़कर कॉरपोरेट घरानो और बड़े पूंजीपतियों को विकास के नाम पर विनाश करने के लिए बेहिचक सौंपा जा रहा है। 

                आप भलीभांति अवगत है कि देश में  नये वन अधिकार कानून 2019 को लागू करने के लिए सरकार बैचेन दिख रही है। इस कानून में आदिवासियों को क्या होनेवाला है ?  इस पर आदिवासी समाज को क्या नुकसान होने वाला है ? इस पर गहराई से जाँच पड़ताल नहीं करेंगे तो निश्चित रूप से हमारी अस्मिता को मटियामेट करने के लिए सरकार उतारू है। आदिवासियों के लम्बे संघर्षों के बदौलत हासिल किये गए वन अधिकार कानून -2005 को निरस्त करने की साजिश कर रही है और संसद में बगैर चर्चा के देश में  लागू करने की कोशिश चला रही है। सवाल है इस कानून के आने से आदिवासी समाज पर बहुत ही कुप्रभाव पड़ने वाला है। नये कानून के लागू होने पर वन उत्पादों से आदिवासी समुदाय को हमेशा-हमेशा के लिए वंचित कर दिया जायेगा। सुखी लकड़ी, साल -सखुआ  और केन्दु पता भी उन्हें नसीब नहीं होगी।  यहां तक की उनके पशुओं  के  चारे पर  भी रोक लग जाएगी। इतना ही नहीं इस नये कानून के अस्तित्व में आने से वन विभाग के अधिकारियों को बेलगाम अधिकार मिल जायेंगे और नतीजतन उनका दमन-अत्याचार बढ़ जायेगा और इसका उल्लंघन करने पर दस हजार से लेकर एक लाख रुपया तक जुर्माना भरना पड़ेगा।  साथ ही उनके लिए अलग से हाजत और रेंजर कोर्ट बनाने की योजना सरकार सोंच रखी है।

             दरअसल, सरकार आदिवासियों को जल, जंगल, जमींन, जलस्रोत व् खनिज संपदा से पूरी तरह वंचित कर देने की साजिश रच रही है।  साथ ही पर्यावरण का जो नुकसान होगा वह अलग ही बात है।  यह काम  इसलिए की जा रही है ताकि कॉरपोरेट घरानो को मुंहमांगी कीमतों पर जंगलों की जमीन, लकड़ी वन्य  उत्पाद, खनिज आदि दिया जा सके।  कितनी अजीब बिडंबना है सरकार हमसे वोट लेगी और लाभ पहुंचाएगी निजी घरानो को. हमको यही तो समझना है अन्यथा हम हमेशा दमन झेलने के लिए अभिशप्त रहेंगे और पर्यावरण सम्बन्धी  नियमों के खुले उल्लंघन की छूट उन्हें मिल जाएगी। 

               पर्यावरण संकट आज एक विश्वव्यापी मुद्दा बन गया है। लेकिन संवेदनहीन सरकारें और निजी घरानों को इससे क्या मतलब है उन्हें तो सिर्फ रुपया कमाना है।  पूंजी संग्रह करना है।  आदिवासी समाज को पूरी दृढ़ता के साथ एकताबद्ध होकर बुलंदी से इस काले कानूनों को थोपने वाली सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कमर कसना होगा।  नहीं तो आनेवाली पीढ़िया हमें कदापि माफ़ नहीं करने वाली है।

              सरकार पूरे देश में नागरिकता संशोधन एक्ट ( सी सी ए ) और नागरिकता रजिस्टर ( एन आर सी  ) सरीके छलभरी योजना को लागू करने पर तुली है। एनआरसी अर्थात नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस आप देश में नागरिकता की सूची में है या नहीं जोड़ने के लिए सरकार के पास अर्जी पूरे  दस्तावेज के साथ सौंपना है।  इसके लिए सरकार को पर्याप्त सबूत आपको दिखानी है आप इस देश में रहने लायक है या नहीं।  उसके बाद जाँच पड़ताल कर आपका नाम सूची में जोड़ने का काम किया जाना है।  पर्याप्त दस्तावेज  के अभाव में आपको डिटेंशन सेल बनाकर कैद कर दिया जायेगा। अगर आप दिखाते भी है तो क्या गारंटी है कि इस सूची में आपका नाम होगा ही असम का उदाहरण आपके सामने है वहां तक़रीबन 3.29  करोड़ लोग आवेदन प्रस्तुत किये थे।  जिसमे से कुल 1. 9  करोड़ लोगों का ही नाम इस सूची में शामिल किया गया बाकि लोगों को कहा गया यह आपका देश नहीं है। आप यहां के नागरिक नहीं है और उसे कैम्प में डाल दिया गया है।  जिसमे लगभग 28 लोगों की मौत हो चुकी है।  आप अपने ही देश में पराया हो जायेंगे।  सवाल उठता है इसके जद में अधिकतर कौन लोग आएंगे ? आपको मालूम है कि इसमें सबसे ज्यादा शिकार गरीब -गुरबों, आदिवासी,दलित, विस्थापित , घुमन्तु जातियां, बंजारा, निरक्षर लोगों को आना है। इनके नाम आसानी से हटाये जा सकते है क्योंकि गरीबों के पास अक्सर पर्याप्त दस्तावेज नहीं रहते है।  इसलिए गरीब, दलित, आदिवासी, दलित, विस्थापित , घुमन्तु जातियां, बंजारा, निरक्षर को  एनआरसी रजिस्टर में आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। बेदिया समाज अभी पिछड़ापन का दंश झेल रहा है।  ऐसी स्थिति में हमारा समाज भी इससे प्रभावित होने से नहीं बच पायेगा। इस विभाजन पैदा करने वाली योजना को बारीकी से समझना और उसे नाकाम करने का बीड़ा उठाना है। सरकार असल मुद्दों मुफ्त शिक्षा, रोजगार, स्वस्थ, सिंचाई, पानी, सड़क से भटकाकर विभाजनकारी एनआरसी एजेंडा को लागू करने की कवायद कर रही है इसे ख़ारिज करवाना। और आदिवासी लोग, आम मेहनतकश लोग रोजमर्रे की जिंदगी में जो जरूरी आर्थिक चिंताओं को झेल रहे है उनका समाधान करने के लिए सरकार को विवश करने का काम करना है।     


     


















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