Wednesday, January 8, 2020

सन्दर्भ : गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी शहीद जीतराम बेदिया का जयंती समारोह


                एकता और संघर्ष की मशाल को थामे रखें 
सुरेन्द्र कुमार बेदिया 

30 दिसंबर, 2012  पूरे बेदिया समाज के लिए अपने नायक को स्थापित करने का एक गौरवशाली ऐतिहासिक दिन था। झारखण्ड राज्य ओरमांझी प्रखंड  के पिस्का एनएच 33 चौक में इतिहास के पन्नों से बेदखल कर दिये गये स्वतंत्रता आंदोलन के महासंग्रामी योद्धा शहीद जीतराम बेदिया का पहली बार 210 वीं जयंती व समारोह मनाया जा रहा था। 

यह समारोह ऐसे समय में मनाया जा रहा था] जब भारत की राजधानी दिल्ली के एक बस में हमारी बहादूर बहन निर्भया के साथ गैंग रेप कर दरिदों ने मौत के मुंह में धकेल दिया था। इसका प्रखर प्रतिवाद हो रहा था। हजारों हजार नौजवान दिल्ली के सड़कों में उतरकर अपना आक्रोश प्रकट कर रहे थे। दूसरी तरफ झारखण्ड में अवसरवादी गठबंधन में बनी सरकार की सत्ता डगमगा रही थी और झारखण्ड सरकार द`वारा बेदिया अनुसूचित जनजाति पर सुनियोजित ढंग से हमले तेज हो रहे थे। 

         ऐसी परिस्थिति में बेदिया अनुसूचित जनजाति विकास परिषद ने पूरी ऊर्जा के साथ अपनी जनशक्ति को बटोरकर इस समारोह में शिरकत की थी जिससे बेदिया समुदाय की अपार भीड़ उमड़ पड़ी थी। लम्बे आरसे के पश्चात पहली बार करीब 20&25 हजार की भारी भीड़ ने सामूहिक चेतना और एकता की प्रबल भावना का प्रतीक बन गया था। इनकी मनोदशा कह रही थी की यदि हम जागरूक रहें ]सजग रहे] एकजूट रहें और वैचारिक रूप से एकमत हों] तो हमें कोई भी शक्ति अपनी राह से विचलित नहीं कर सकता है और न ही हमें परास्त कर सकती है। 

        निश्चित तौर पर यह भीड़ अपने जाति समुदाय के दिलो&दिमाग में सदा के लिए यादगार बना रहेगा और बेदिया समुदाय के नई पीढ़ी को सजग संगठित रहने और संघर्ष करने हेतु हमेशा प्राण वायु देता रहेगा] उसे प्रेरित करता रहेगा।  यह आंदोलन अन्य समुदाय में राज्य और राजनीति के बीच अपना गहरा प्रभाव छोड़ा है। व्यापक स्तर पर एक नई चेतना को जन्म दिया है। भीड़ के जेहन में यह बातें भी स्पष्ट रूप से उभर रही थी की एकताबद्ध संघर्षों के जरिये भविष्य में आनेवाले संकटों और समस्याओं से हमें मुक्ति मिल सकती है। 

         जैसा कि हमारा मानव समाज या जातीय समाज निरंतर परिवर्तनशील और गतिशीलता के दौर से गुजरता रहा है।  इसलिए गतिशील भौतिक दर्शन को आत्मसात कर ही आज हमें सामाजिक विकास के लिए मार्ग बनाने की जरूरत है। अपने समुदाय की व्यापक जनगोलबंदी] भागीदारी] एकताबद्ध आंदोलन एवं उपलब्धियों से बेदिया समाज के अंदर एक नया जोश और जज्बा पैदा हुआ है। यह बेदिया अनुसूचित जनजाति विकास परिषद नामक संगठन का निर्माण व नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम है। लेकिन कभी *&कभी अपने ही लोगों द्वारा अपने जाति समुदाय के लोगों को गुमराह कर प्रगति की बजाय अवनति की ऒर धकेलने का काम किया जाता है। इससे सबों को हमेशा सचेत रहने की आवश्यकता है। इस कार्यशैली के बदौलत ही सामाजिक संगठन को ठोस सुदृढ़ व जीवंत बनाया जा सकता है और सकारात्मक विचारों को अपनाकर ही अपने समुदाय को प्रगति परिवर्तन के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है। उनकी पीड़ा वेदना एवं समस्याओं का हल निकला जा सकता है। और समाज को सही दिशा में उतरोतर विकास कर सकते है। भविष्य में विकास करने के लिए सामाजिक जीवन के कई पड़ाव को संघर्ष के रास्ते से गुजरते रहना पड़ेगा।  
       aaआज बेदिया जनजाति समाज को अपने भीतर से ही रोशनी ग्रहण करनी है। यह रोशनी शहीद जीतराम बेदिया के संघर्षशील परम्परा से लेना है । उसे अमल में लाना है। तभी यह अंधकार छंटेगा। आत्मसम्मान जगेगा और पहचान निर्मित होगी। 

      हमें बेहद ख़ुशी हो रही है कि पत्रिका का तृतीय संस्करण एक नई ऊर्जा के साथ आपके साकारात्मक दृष्टिकोण और वैचारिक&आर्थिक सहयोग से आपके हाथों में पहुंच रही है। पिछले अंकों में आप आलोचनात्मक सुझाव भी दिए थे और पत्रिका की प्रशंसा करते हुए ढेर सारी बधाईयां प्राप्त हुई थी। इस बार से एक नई कॉलम पाठकों की राय में आपके विचारों को जगह दी जा रही है। आगे भी पत्रिका को गंभीर वैचारिक &-चिंतनशील पत्रिका बनाने के लिए आप सबों को तहेदिल से धन्यवाद प्रेषित कर रहे है।  इस पत्रिका के माध्यम से यदि अपने समुदाय के अंदर अपनी समस्याओं के बारे में सोंचने] समझने] लिखने और संगठित होने की क्षमता पैदा कर सकें] तो हमारा प्रयास सार्थक होगा। 

बेदिया पत्रिका 30 दिसम्बर , 2014  अंक -3  में प्रकाशित 

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